सभी स्थितियों परिस्थितियों में अनुकूलतम समायोजन स्थापित की आस में प्रयासरत

ज़िन्दगी में एक समय मे बहुत सारी चीज़ें रेत की तरह फिसलती जाती हैं, निकलती जाती हैं, सरकती जाती हैं क्योंकि आप उन सभी बातों को, उन सभी लम्हों को , उन सभी जज़्बों को, उन सभी निकलती , बिसरती , छूटती जाती चीजों और बातों  को एक साथ संजो पाने में समर्थ नही होसकते लेकिन समस्या ये है कि किसी अप्रत्याशित घटना के घटित हो जाने के भयवश एक ओर तो मानुष मन  उपरोक्त वास्तविकता(शायद ये वास्तविकता न भी हो) को स्वीकार करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नही और वो सारी निकलती , सरकती चीजों और लक्ष्यों को एक साथ  समेट लेने के लिए , संजो लेने के लिए दुस्साहसिक रूप से अनवरत कोशिश करता जाता है ,करता जाता है और करता ही चला जाता है और दूसरी ओर व्यावहारिक और वास्तविक परिस्थितियां (शायद ये व्यावहारिक न भी हो) सभी चीजों और  सभी लक्ष्यों को साधने के क्रम में (कुछ अपनी महत्वाकांक्षा की खोज से संबंधित और कुछ स्वउत्तरदायित्व को न निभा पाने के फलस्वरूप जनित होने वाली प्रत्याशित अव्यवस्था और प्रतिकूलता के भय से सम्बद्ध) व्यक्ति विशेष को जीवन के विभिन्न आयामों में पीछे होते जाने के(शायद एकदिशीय मजबूत प्रयास के अभाव में) लिए विवश करती जाती हैं और करती ही चली जाती हैं लेकिन फिर से ये हठी मानुष मन हार स्वीकार के लिए तैयार नही और वो सभी ‘किन्तु-परंतु’ जैसी शब्दावलियों को दरकिनार करते हुए , फिर से सभी स्थितियों परिस्थितियों में अनुकूलतम समायोजन स्थापित की आस में प्रयासरत हो जाता है और महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की उन पंक्तियों को मौजूं बना जाता है कि –

लहरों से डरकर नौका पार नही होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती

(Where there is a will, there is away)

इसी सकारात्मक आशा की आस में आभार संग वैभव

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