अब तो डर लगता है

अब तो डर लगता है
अनजानी डगरों पर चलने से डर लगता है
शय और मात का खेल है जिंदगी
इसको जीने से डर लगता है

रिश्तों की बुनावट बुनने में अरसे बीत जाते है
इक झटके से तार तार न हो जाए वो रिश्तें
ये सोचकर डर लगता है

दोष मढ़ना बड़ा ही आसान हैं जिंदगी में
पर जरा संभलकर चलना जरा अब
क्योंकि जज्बातों को बयां करने में अब डर लगता है

कोई खलल न पड़ जाए भंवरों की रवानी में
क्योंकि मधुर संगीत के स्पंदन से अब डर लगता है

तितलियां फूल पर मंडराती होंगी
लेकिन अलगाव के बाद रिश्तों को अब संबल कहां मिलता है?

शर्तों के दामन में अब तो निभ रहे हैं रिश्ते
उन डोर को थामे रखने में अब तो डर लगता है

जिन हंसी ठिठोली में बरबस ही झलकने लगी थी रिश्तों की गर्माहट
उन रिश्तों का अग्नि परीक्षा से गुजरना अब मुश्किल लगता है
रिश्ते तार तार न हो जाएं
थोड़ा डर लगता है
थोड़ा डर लगता है

साभार
Dr. Vaibhav की कलम से😔

Reference: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid02eGREP6ykadmaaqP8Z3usVYRngaLjNT1Vz38Zf4UgTteDWd9fJKdiHeoFCyp4UCjzl&id=100013897126228&sfnsn=wiwspwa&mibextid=VhDh1V

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