काश ये लम्हे थम जाते

काश ये लम्हे थम जाते अगर बावड़ियों और तालाबों में ठहरे पानी की तरह तो समेट लेते जिंदगी के उन अनमोल पलों को, जिंदगी के उन यादगार पहलुओं को और भर लेते उनको अपने आगोश में जैसे इक मां भर लेती है किसी शिशु को अपने आगोश में । तब मानो बसंत भी झूम उठता शस्य श्यामला धरती के हरे भरे आंचल में खुद को पाकर और सावन के झूलों की पींगो की खुशी का तब मानो कोई ठिकाना ही न होता और पींगे भरते ही चला जाता वो इतना ही नहीं तब पक्षियों के कलरव का वह स्वर्णिम गुंजन कूक कोकिला को भी सोचने पर मजबूर कर देता और वसुंधरा के कर्ण पटल पर मिश्री जैसी मिठास घोलता ही चला जाता वो , सूर्योदय की अद्भुत–विहंगम निराली छटा नैनो में बसी की बसी रह जाती मानो तब ,मन के अथाह सागर में जल की कलकल करती हिलोरें मारती लहरें अजीब सी शीतलता दे जाती तब , पूरा का पूरा मानस क्षितिज तब सप्तरंगी प्रकाश से सराबोर हो जाता
सारे के सारे मयूर फिर केवल नृत्य कला का प्रदर्शन करते हुए रास रंग में डूब जाते और तब शायद समेट पाते अपने सभी अजीजों के साथ गुजारें उन स्वर्णिम पलों को और तब शायद मन में न रह जाती कोई टीस,लेकिन अफसोस वक्त नहीं ठहरता,वक्त नहीं ठहरता,शायद ठहर जाए,शायद ठहर जाए,कोई तो बताए,कोई तो बताए?

Dr. Vaibhav😔

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