ख्वाबों का दामन थामें रखना भी ज़रूरी है
पांवों को ज़मीं पर टिकाये रखना भी ज़रूरी है
कब टूट जाए कौन सा तारा,क्या पता?
इसलिए आसमान पर नज़र बनाये रखना भी ज़रूरी है
झुकना भी ज़रूरी है
लड़ना भी (मुकद्दर)ज़रूरी है
और आंच जब आये उसूलों पर
तो फिर,हदों को लांघ जाना भी ज़रूरी है
चलना भी ज़रूरी है
उड़ना भी ज़रूरी है
पर तूफां के मंज़र में ज़रा
ठहर जाना भी ज़रूरी है
उगना भी ज़रूरी है
ढलना भी ज़रूरी है
पर ग्रहण की उन काली छाया पर
शमां रौशन किये जाना भी ज़रूरी है
क़िस्से भी ज़रूरी है
कहानी भी ज़रूरी है
गर पग होते हो डगमग
तो फिर बैसाखी भी ज़रूरी है
गम भी ज़रूरी है
खुशियां भी ज़रूरी हैं
ज़िन्दगी में बिछाई जा रही हो गर पासों की बिसात
तो हारी हुई बाज़ी को पलटना भी ज़रूरी है
नियति भी ज़रूरी है
लहज़ा भी ज़रूरी है
और नैनों के जल से फिर
पग धोना भी ज़रूरी है
रसरी भी ज़रूरी है
मटकी भी ज़रूरी है
और गर सिल पर न पड़ता हो निशां
तो फिर काक चेष्टा भी ज़रूरी है
काक चेष्टा भी ज़रूरी है
चाहे कुछ भी मजबूरी है
चाहे कुछ भी मजबूरी है
Regards
Dr. Vaibhav
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