न कोई इंतजाम होगा

इस जहां के पार भी तो जरूर कोई संसार होगा
जहाँ तफ्सील से मयस्सर जज्बातों का कारोबार होगा

संजीदगी तो होगी ख्यालों में
पर न कोई वहां इक दूजे का बरखुरदार होगा

खुदा की नेमतें तो होंगी ,पर
गमों से लबरेज फिर इश्तिहारों का बाजार होगा

मुशायरे और गजलों की रवानगी तो होगी
पर एहतियातों की किश्ती पर सवार फिर हर इक इंसान होगा

ख्वाबों के दामन के बरअक्स इजहार–ए –इंतकाम होगा
इंसान ही इंसान की मुफलिसी का फिर पैरोकार होगा

मुफलिसी के पैरो तले रौंदी जाएंगी कुर्बानियां
कयामत से टकराने का फिर यही अंजाम होगा

चिराग तो होंगे ,पर रोशनी का मुझे पता नहीं ,पर
तसव्वुर की लौ में रौशन गुले गुलजार होगा

पर याद रहे,
किश्ती को किनारे लगाए जाने का फिर
न कोई इंतजाम होगा
न कोई इंतजाम होगा

साभार
डॉ. वैभव की कलम से

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