सपनों का हदों में बने रहना भी है जरूरी

सपनों का हदों में बने रहना भी तो है जरा जरूरी
बंद सलाखों में जकड़े रहना उनको
भले फिर खुद की कितनी भी हो क्यों ना मजबूरी

दुखती रग भी दुखने लग जाए जब पल छिन
तब उम्मीदों की मटकी पर
प्रबल प्रहार भी तो हो जाए जरूरी

स्वच्छंद क्षितिज पर गर मन भरने लगे हिलोरे
तो परों को जरा नफासत से फिर
कतरा जाना भी तो है जरूरी

पांव पसारने का शौक मन में पाल ही रखा है गर इतना
तो हुनर पहले चादर को नापे जाने का भी है जरूरी

तरक्की के शोलो का इतना ही फितूर पाल रखा है गर सीने में
तो अंगारों के जख्मों से वाकिफ हो जाना भी तो है जरूरी

समर में किला फतह करने की है गर इतनी ही उत्कंठा
तो पहले रण कौशल को जज्ब (absorb) किया जाना भी तो है जरूरी

अन्यथा उम्मीदें रह जाएंगी अधूरी
उम्मीदें रह जाएंगी अधूरी
और ना हो पाएंगी फिर
कमियां कभी पूरी
कमियां कभी पूरी

डॉ. वैभव🙏

Reference: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid02QoSTVNCkr58itB8E4xgYbCEyWhVsGAoTb47v9iEQPPhXGxBrQFDxyPNriLWMDUFl&id=100013897126228&sfnsn=wiwspwa&mibextid=VhDh1V

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