उदासीनता/तटस्थता

इस संसार में सब कुछ क्षणिक है:तथाकथित आनंद भी क्षणिक,उत्साह भी क्षणिक और तो और निराशा हताशा और विषाद भी क्षणिक । आकर्षण भी क्षणिक, विद्वेष भी क्षणिक और दौड़ता भागता सरपट हाथों से रेत की माफिक फिसलता जाता समय भी क्षणिक। भयोत्पादक मनोभाव भी क्षणिक और सप्त अश्वों पर सवार मन के बेलगाम घुड़सवार भी क्षणिक । सारी ऋतुएं क्षणिक, पक्षियों का कलरव क्षणिक, और तो और पर्वतों की बर्फीली चोटियों के आंचल से प्रवाहित होता श्वेत धवल वस्त्र धारण किए हिमनद भी क्षणिक । यथार्थ में इस भौतिक मिथ्या जगत की कच्ची नीव ही क्षणिकवाद के जर्जर और डगमगाते आधार स्तभों पर आश्रित है ।कुछ भी चिरंजीवी—अंतहीन एवं शाश्वत नहीं है ये असार संसार डोलती हिचकोले खाती हुई नैय्या सदृश दीख पड़ता है जिसका खिवैय्या भी क्षणिक भावों में लीन है मोक्ष एवं कैवल्य भाव भी स्वयं को छलें जाने का जरिया मात्र है ऐसे क्षणभंगुरता से युक्त , वाह्य मधु आवरण की चाशनी में निमग्न , उड़नशील ,भौतिकवादी —रहस्यवादी संसार की चकाचौंध को पटखनी देने का —निरा मौन किंतु परम शक्तिशाली और अद्भुत विकल्प का नाम है—समस्त स्थितियों और क्षणिकवाद के प्रति
उदासीनता /तटस्थता……….

लेखक : तटस्थ भाव भंगिमा युक्त
डॉ.वैभव अग्रवाल🙏

Reference: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid08p6TfiGEsiRXdBycRU2kE2p5gtiUZBcsc5E4h8xSEge5cJastvkG3umJ3xXKKqHtl&id=100013897126228&sfnsn=wiwspwa&mibextid=VhDh1V

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