चलो मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

चलो आज खुद पर इक एहसान करते हैं
कि जरा, मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

मन तो भरता ही रहता है नित नए कुलांचे
चलो इस पर जरा आज इक लगाम कसते हैं
कि चलो फिर जरा आज मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

मन के क्षणभंगुर कपाटों पर
भले कितनी भी होती रहे खयालों की दस्तक
उन खयालों के चंगुल से खुद को वीरान करते हैं
कि चलो जरा, मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

चिंगारियां भड़केंगी तो सभी का नेस्तनाबूद होना तय है
ज्वालामुखी से बरसते शोले शायद यही ऐलान करते हैं
चलो जरा, मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

सप्त अश्वों से सुसज्जित रथों पर सवार होकर
ध्वनि वेग से चहुं दिशाओं में चलो आज प्रस्थान करते हैं
क्यूंकि मन के घोड़े भी भला कहीं क्या विश्राम करते हैं?
चलो फिर से कमर कसो जरा,उठो
मन के खिलाफ थोड़ा काम करते हैं

तूफानों के साथ उड़ जाना तो बुजदिलों की पहचान है
तूफान में भी किश्ती को थामे रखना ही तो सूरमाओं का असल इम्तिहान है

तो चलो फिर आज इसी इम्तिहान को मौजूं बनाते है
थोड़ा टकराते है
थोड़ा अपनाते हैं
और जिंदगी के कारवां को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं
जिंदगी के कारवां को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं

आभार संग
डॉ. वैभव की कलम से

Reference: https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0WxLQfcG1B8At9YftswnQX3UV4c6UMyhDvjxZJbGivhm5MQATv3M9WgFjg1T5XJyHl&id=100013897126228&sfnsn=wiwspwa&mibextid=VhDh1V

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